Sunday, January 27, 2019

जोकोविच ने नडाल को हराकर जीता ऑस्ट्रेलियन ओपन का ख़िताब

नोवाक जोकोविच ने ऑस्ट्रेलियन ओपन का ख़िताब रिकॉर्ड सातवीं बार जीत लिया है.

उन्होंने फ़ाइनल मुक़ाबले में रफ़ायल नडाल को सीधे सेटों में 6-3,6-2, 6-3 से हराया.

पहले उम्मीद की जा रही थी कि दोनों के बीच 2012 के एपिक फ़ाइनल की तरह एक ज़ोरदार मुक़ाबला देखने को मिलेगा लेकिन नडाल ने महज दो घंटे चार मिनट में मुक़ाबला अपने नाम कर लिया.

2012 में दोनों के बीच मुक़ाबला पांच घंटे 53 मिनट तक चला था, जिसमें बाज़ी जोकोविच के ही नाम रही थी.

वर्ल्ड नंबर एक नोवाक जोकोविच के सामने शुरुआत से ही रफ़ायल नडाल फीके नज़र आए. पूरे मैच के दौरान जोकोविच ने 34 विनर लगाए और उन्होंने केवल नौ अनफोर्स्ड एरर किए जबकि नडाल ने पूरे मैच के दौरान 28 अनफोर्स्ड एरर किए.

ये नडाल के करियर का कुल 15वां ग्रैंड स्लैम ख़िताब है. ऑल टाइम लिस्ट में जोकोविच अब पीट संप्रास के 14 ग्रैंड स्लैम से आगे निकल चुके हैं.

जबकि कुल ग्रैंड स्लैम हासिल करने में वे अब नडाल से दो क़दम पीछे हैं और रॉजर फ़ेडरर से पांच क़दम पीछे हैं.

जनवरी का दिन था. अचानक बहुत ज़ोर से धरती हिली थी और दफ़्तर के सारे लोग सीढ़ियों से भागते हुए सड़क पर आ गए थे. एक अकेले कमलेश्वर थे जो हाथ में 'डनहिल' की सिगरेट लिए, कश लगाते वहीं 'पैंट्री' में खड़े रह गए थे.

मेरी तरफ़ देख कर बिना किसी घबराहट के बोले थे, 'बैठिए यहाँ कुछ नहीं होगा.'

उनसे दूसरी मुलाक़ात शायद दो साल बाद फिर बीबीसी स्टूडियो में हुई थी और मैंने उनसे पूछा था, 'आप कई शहरों में रहे हैं, मैनपुरी, इलाहाबाद, मुंबई और दिल्ली...इनमें से किस शहर को अपने सबसे नज़दीक पाते हैं?'

कमलेश्वर ने मुस्कराते हुए जवाब दिया था, 'इनमें से कोई ऐसा शहर नहीं हैं, जिसे मैं भूल सकूं. मेरी बहुत ख़ूबसूरत यादें मैनपुरी की है. एक हमारे यहाँ ईशान नदी हुआ करती थी, जिसे लोग 'ईसन' कहते थे. उसके किनारे घूमने जाना, शैतानियाँ करना, जंगलों में चले जाना, वहाँ से बेर तोड़ना, आम तोड़ना, खेतों से सब्ज़ियों की चोरी करना... ये सब चलता था और बहुत आनंद आता था.'

'सबसे बड़ी चीज़ थी कि मैनपुरी में ही मेरा पहला इश्क हुआ था. इश्क के बारे में कुछ मालूम तो था नहीं. कोई अच्छा लगने लगा तो इश्क हो गया. एक बंधी बंधाई रवायत सी थी कि मेरे और उसके बीच में बहुत ही घटिया समाज बीच में आ रहा था. उससे कहने की हिम्मत ही नहीं होती थी. न उसकी हिम्मत होती थी कि भर-आँख मुझे देख ले. ये समझ लीजिए कि करीब ढाई तीन फ़र्लांग से ये इश्क चला करता था.'

'जब उसकी शादी होने लगी तब मामला थोड़ा गंभीर हो गया. उस वक्त महसूस किया कि कुछ खो रहा है. उस ज़माने में मेरे बाल बहुत बड़े होते थे जो माँ को पसंद नहीं थे. उसकी शादी में जाना था लेकिन मन भीतर से रो रहा था. माँ ने घर पर नाई बुलवा कर बाल इतने छोटे करवा दिए जैसे आर्मी वालों के होते हैं. फिर मैं उस शादी में गया ही नहीं.'