Thursday, February 21, 2019

पुलवामा में मारे गए सैनिकों के शव के पास बैठ मुस्कुरा रहे थे आदित्यनाथ योगी?

कुछ लोगों का दावा: 'जब पूरा देश पुलवामा के चरमपंथी हमले में मारे गए जवानों का शोक मना रहा था, उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी तिरंगे में लिपटे शवों के पास बैठकर मुस्कुरा रहे थे'.

इस दावे के साथ सीएम योगी, बीजेपी नेता मोहसिन रज़ा, बिहार के गवर्नर लाल जी टंडन और यूपी के कैबिनेट मंत्री आशुतोष टंडन का 30 सेकेंड का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफ़ी शेयर किया जा रहा है.

फ़ेसबुक और ट्विटर पर इस वीडियो को सैकड़ों बार शेयर किया जा चुका है. इसे शेयर करने वालों का एक ही मक़सद है- 'ये दिखाना कि बीजेपी नेता कितने असंवेदनशील हैं'.

यू-ट्यूब और कई चैटिंग ऐप्स पर भी 14 फ़रवरी के पुलवामा हादसे से जोड़कर आदित्यनाथ योगी का ये वीडियो शेयर किया जा रहा है.

भारत प्रशासित कश्मीर के पुलवामा में हुए चरमपंथी हमले में 45 से ज़्यादा जवान मारे गए थे और कई अन्य जवान घायल हो गए थे.

लेकिन अपनी पड़ताल में हमने पाया कि जिस वीडियो के आधार पर बीजेपी नेताओं के इस घटना के प्रति गंभीर न होने की बात की जा रही है, वो पुराना है और पुलवामा हमले से उसका वास्ता नहीं है.

आदित्यनाथ योगी और अन्य बीजेपी नेताओं के मुस्कुराने का ये वीडियो पिछले साल का है, जब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री एनडी तिवारी का अंतिम संस्कार हुआ था.

कद्दावर नेता एनडी तिवारी का देहांत 18 अक्तूबर 2018 को दिल्ली में हुआ था. वो 93 वर्ष के थे.

एनडी तिवारी के अंतिम संस्कार में यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी बीजेपी नेता मोहसिन रज़ा से ऐसी क्या बात कह रहे थे कि चारों नेता पार्थिव शरीर के पास बैठे खिलखिला उठे, इसकी जानकारी तो सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है. लेकिन बीजेपी और उनके नेताओं की इस हरक़त पर पार्टी की काफ़ी किरकिरी हुई थी.

ये वीडियो साल 2018 में भी वायरल हुआ था और लोगों ने आदित्नाथ योगी की भावभँगिमा की आलोचना की थी.

जिस तरह पाकिस्तानी अपने मुल्क को देखते हैं, ज़रूरी तो नहीं कि बाक़ी दुनिया भी पाकिस्तान को वैसे ही देखे. इसी तरह जैसे हिन्दुस्तानी भारत को देखते हैं, ज़रूरी तो नहीं कि विदेशी भी भारत को इसी दृष्टि से देखें.

जनता की भावनाएं, मीडिया के एक्शन से भरपूर मांगें, नेताओं के मुंह से निकलने वाले झाग अपनी जगह, मगर सरकारों को किसी भी एक्शन या रिएक्शन से पहले दस तरह की और चीज़ें भी सोचनी पड़ती हैं.

अब पुलवामा के घातक हमले को ही ले लें. या इससे पहले पठानकोट और उड़ी की घटना या 2008 के मुंबई हमले या 1993 के मुंबई में दर्जन भर बम विस्फोटों से फैली बर्बादी. सबूत, ताना-बाना और ग़ुस्सा अपनी-अपनी जगह मगर इसके बाद क्या?

युद्ध होना होता तो 13 दिसंबर 2001 को हो जाना चाहिए था जब लोकसभा बिल्डिंग पर चरमपंथी हमला हुआ था.

दो दिन बाद रक्षा मंत्रालय की तरफ़ से सेना को मार्चिंग ऑर्डर मिल चुके थे. 1971 के बांग्लादेश युद्ध के बाद पाकिस्तान से मिली सीमा पर भारतीय सेना की ये सबसे बड़ी तैनाती थी.

दोनों तरफ़ की फ़ौजें पंजाब से गुजरात तक एक दूसरे के दीदों में दीदें डाली घूरती रहीं और फिर 8000 करोड़ रुपये ख़र्च करने के बाद सेना डेढ़ वर्ष के बाद अगले मोर्चों से वापिस.

और इसके बाद आगरा में मुशर्रफ़-वाजपेयी मुलाक़ात, मगर नतीजा आज तक - ढाक के वही तीन पात.

इस बार भी जब तक ग़ुस्सा ठंडा नहीं हो जाता तब तक चाहें तो सेना को एड़ियों पर खड़ा रखें. चुनाव में पुलवामा को मुद्दे के तौर पर पूरी तरीक़े से सब पार्टियां इस्तेमाल करें.

दोनों देश इस्लामाबाद और दिल्ली से लंबे समय के लिए राजदूत बुलवा लें. आर्थिक व सांस्कृतिक दौरे और तबादले रोक दें. एक-दूसरे के ख़िलाफ़ गुप्त कार्रवाईयां और तेज़ कर दें, मगर फिर- इसके बाद?

चीन हो या रूस या अमरीका या सऊदी अरब या यूरोपीय यूनियन- हर कोई बाक़ी संसार और उसकी मुश्किलों को अपने-अपने हिसाब से देखता है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोस्ती भी मोल-तोल में होती है और दुश्मनी भी गणित के हिसाब से होती है.

इस वक़्त अगर इलाक़े में अफ़ग़ानिस्तान को सुलटाने के लिए अमरीका को पाकिस्तान की ज़रूरत न होती तो अब तक ट्रंप साहब पुलवामा पर कम से कम पांच ट्वीट कर चुके होते.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में ये मामला उठाया ज़रूर जा सकता है मगर चीन वीटो कर देगा. सऊदी अरब को जितनी भारत की ज़रूरत है उससे ज़्यादा सऊदी अरब को पाकिस्तान की.

ईरान और भारत मिलकर पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कोई मोर्चा बना लें ऐसा नज़र नहीं आता.

क्या भारत को पाकिस्तान पर हमला कर देना चाहिए? दिल भले चाह रहा हो पर फ़िलहाल हालात इस क़ाबिल नहीं.

लेकिन, पुलवामा में जो बारूद इस्तेमाल हुआ वो सीमा पार से स्मगल हुआ? जिसने गाड़ी टकराई वो सीमा पार से आया? उसका हैंडलर लोकल था या सीमा की दूसरी तरफ़ बैठा था?

क्या कश्मीर में मिलिटेन्सी आज भी बाहर से कंट्रोल होती है या अब उसका अंदरूनी ढांचा बन चुका है?

और दहश्तगर्दी की भट्टी में इस्तेमाल होने वाला कच्चा माल बलूचिस्तान से कश्मीर तक मुसलसल क्यों पैदा हो रहा है?

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