Tuesday, July 30, 2019

टीपू सुल्तान की जयंती नहीं मनेगी, कर्नाटक सरकार का फैसला

कर्नाटक की बीएस येदियुरप्पा सरकार ने बहुमत साबित करने के अगले ही दिन एक बड़ा फ़ैसला लेते हुए टीपू जयंती पर होने वाले समारोहों को रद्द कर दिया है.

कर्नाटक में सिद्धारमैया की अगुआई वाली पिछली कांग्रेस सरकार ने 2016 से मैसूर के शासक टीपू सुल्तान की जयंती मनाना शुरु किया था और तब से ही हर साल इन समारोहों के विरोध में प्रदर्शन होते रहे थे.

टीपू जयंती का विरोध करने वाली बीजेपी टीपू सुल्तान को "अत्याचारी" और "हिंदू-विरोधी" बताती है.

सोमवार को वरिष्ठ बीजेपी नेता केजी बोपैया ने मुख्यमंत्री को एक चिट्ठी लिख टीपू जयंती को रद्द करने की मांग की थी जिसमें उन्होंने लिखा था कि कई जगहों पर, और ख़ास कर कोडागु ज़िले, में होने वाले विरोध की वजह से निजी और सरकारी संपत्तियों को नुक़सान पहुँचा है.

उनकी चिट्ठी को आधार बनाकर ही सरकार ने तत्काल-प्रभाव से टीपू जयंती को रद्द करने का फ़रमान जारी कर दिया है.

पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्धारामैया ने बीजेपी के इस फ़ैसले की निंदा करते हुए कहा है कि ये बीजेपी की "अल्पसंख्यक-विरोधी" विचारधारा का हिस्सा है.

बेंगलुरु साउथ से बीजेपी के सांसद तेजस्वी सूर्या ने ट्वीट किया है, "'टीपू सुल्तान एक अत्याचारी था जिसने हज़ारों लोगों की हत्या की और ये शर्मनाक है कि पहले की सरकारों ने उनके सम्मान में जयंती मनाई. बीएस येदियुरप्पा सरकार अब पिछले गठबंधन के ग़लत फैसलों को सुधार रही है."

टीपू सुल्तान को एक बहादुर और देशभक्त शासक के रूप में ही नहीं धार्मिक सहिष्णुता के दूत के रूप में भी याद किया जाता है.

लेकिन इतिहास की मानें तो टीपू सुल्तान को सांप्रदायिक शासक सिद्ध करने की कहानी गढ़ी हुई है.

कुछ समय से भाजपा नेता और दक्षिणपंथी इतिहासकार टीपू को 'हिंदुओं के दुश्मन' मुस्लिम सुल्तान के रूप में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. टीपू को हिंदुओं का सफ़ाया करने वाला शासक बताया जा रहा है.

मगर टीपू से जुड़े दस्तावेज़ों की छानबीन करने वाले इतिहासकार टीसी गौड़ा वरिष्ठ पत्रकार इमरान क़ुरैशी को बताते हैं, "टीपू के सांप्रदायिक होने की कहानी गढ़ी गई है."

टीपू ऐसे भारतीय शासक थे जिनकी मौत मैदाने-जंग में अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ लड़ते-लड़ते हुई थी. साल 2014 की गणतंत्र दिवस परेड में टीपू सुल्तान को एक अदम्य साहस वाला महान योद्धा बताया गया था.

टीपू सुल्तान मैसूर से लगभग 15 किलोमीटर की दूरी पर श्रीरंगपट्टनम में एक सुंदर मकबरे में अपने पिता हैदर अली और माँ फ़ातिमा फ़ख़रुन्निसा के बाज़ू में दफन हैं.

श्रीरंगपट्टनम टीपू की राजधानी थी और यहां जगह-जगह टीपू के युग के महल, इमारतें और खंडहर हैं.

टीपू के मक़बरे और महलों को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग श्रीरंगपट्टनम जाते हैं.

टीपू के साम्राज्य में हिंदू बहुमत में थे. टीपू सुल्तान धार्मिक सहिष्णुता और आज़ाद ख़्याल के लिए जाना जाते हैं जिन्होंने श्रीरंगपट्टनम, मैसूर और अपने राज्य के कई अन्य स्थानों में कई बड़े मंदिर बनाए, और मंदिरों के लिए ज़मीन दी.

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